उलझाव की भी कोई सीमा होती है क्या ?शायद हाँ ? शायद नहीं ? गिरिजा कुमार माथुर के साथ मेरी स्मृतियाँ उलझी हुई है कोण सी स्मृति को पहले दर्ज करूँ , किसे बाद में,यह तय करना कठिन हो रहा है | कठिन इसलिए की उनके साथ कई शेम एक साथ गुजरी है , दिन में कई बार फोन पर और कई बार उनकी कर में घुमते हुए कई बाते की है , कविता और दुनिया जहान की बातें की इसलिए स्मृति में बहुत कुछ उलझ गया है उलझाओ का एक शिरा पकड़कर अपनी बात कहने की कोशिश करता हूँ |
लघुकथा – क्या लिखू क्या छोड़ूं
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- Post published:April 21, 2022
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