संपादकीय फरवरी 2022

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इधर कुछ वर्षों में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने जो अंगडाई ली है, यह कल्पना में भी नहीं थी। आने वाले समय में उसकी उड़ान और कितनी गतिमान हो जाएगी, इसका भी अंदाजा लगाना मुश्किल है। फिर भी मुद्रित माध्यम (प्रिंट मीडिया) की अहमियत न खत्म हुई है, न होगी। प्रिंट मीडिया का अपना एक अलग वजद है, इसकी उपयोगिता कई अर्थों में सर्वोपरि भी है। प्रिंट मीडिया का बने रहना साहित्य एवं समाज के हित में है। यह सर्वविदित है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। फिल्म का भी साहित्य से अटूट और निराला रिश्ता है। साहित्य की विधा गीत फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाते हैं, तो अक्सर केवल गीतों के माध्यम से मुर्दा फिल्में भी जी उठी हैं। गीत अच्छा न होने बावजूद जिन पार्श्व गायकों के सुर की बदौलत गीतों को प्रसिद्धि मिली, फिल्में हिट हो र्गइं, उनमें एक बड़ा नाम, बल्कि सबसे बड़ा नाम स्वर कोकिला, सुर साम्रज्ञी भारत रत्न लता मंगेशकर का है। रविवार ६ फरवरी २०२२ को लता दीदी हम सबको छोड़कर स्वर्ग में जा बसीं। मैं यह बात नहीं लिखूगा कि ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे। लता जी ने न जाने कितने तड़पते हुए दिलों को शांति प्रदान की है। अतः ईश्वर खुद ही से उनकी आत्मा को शांति देगा और उन्हें स्वर्ग में उच्च स्थान पर आसीन करेगा। उर्दू शब्दों की भरमार की वजह से हिंदी ग़ज़ल का हाल यह है कि उसके अधिकांश अशआर उर्दू गज़ल के समुंदर में गरकाब हो जाते हैं। दुष्यंत कुमार की गजलों के अधिकांश शेरों का यही रंग है। हमें डुबकी लगाना है, डूबना नहीं है। हम चाहते हैं कि हिंदी ग़ज़ल अपना एक अलग मुकाम बनाए। हम ग़ज़ल को हिंदी गज़ल के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। इसके लिए बहुत परिश्रम की भी आवश्यकता नहीं है, बस थोड़ा सा ध्यान देने की जरूरत है। हिंदी ग़ज़ल कहने के लिए हर शेर में हिंदी के तीन या चार ऐसे शब्दों को शामिल करें जिनसे आमतौर पर उर्दू

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