संपादकीय अप्रैल 2021
पत्र- पत्रिकाएँ हमारे जीवन के मूल्यवान अंग हैं। साहित्यिक पत्रिकाएँ, विधाओं के विकास, एक दम नयी विधा को सामने लाने, विकसित करने और किसी दूसरी भाषा से लायी हुई विधा…
लघुकथा – क्या लिखू क्या छोड़ूं
उलझाव की भी कोई सीमा होती है क्या ?शायद हाँ ? शायद नहीं ? गिरिजा कुमार माथुर के साथ मेरी स्मृतियाँ उलझी हुई है कोण सी स्मृति को पहले दर्ज…
ज़हर पीते रहे गीत गाते रहे
फैज़ अहमद फैज़ की सृजनात्मक प्रतिभा सर्वविदित है। फैज़ अहमद फैज़ ने प्रगतशीलता को आधार बनाकर कला को एक ऐसी ऊँची प्रदान की जिसकी छाया में दुनिया सदा सुकून महसूस…
पहली बख्शीश
भिक्छाम देहि - भिक्छाम देहि बड़बड़ाता हुआ रतन पिछली गली से होता हुआ धोबी - घाट आ पहुंचा था। रामलीला में सीता हरण का सीन हटा चल रहा था, रावण…
मैं यही रहूंगा
यही कोई सात आठ साल पहले की बात है। सुरेश अपने पुराने मित्र रामप्रकाश से मिलने गया था। तब रामप्रकाश ने लगभग चहकते हुए बताया था, " यार मेरा बेटा…
गज़ल
मेरी आँखों से मेरे ख्वाब चुराने आए अपनी औकात कई लोग दिखाने आए अपना तो चाक गिरेबाँ सिला जाता नहीं है मेरी उम्मीद को पोशाक दिलाने आए चुप था तो…
